Sunday, June 7, 2009

वो मुझको पहनकर

वो मुझको पहनकर जब अपने घर को लौट जाते हैं
तो हर दीवार को आईना समझकर मुस्कराते हैं

बना डालें तेरी तस्वीर मिलकर एक दूजे से
वो तारे इस तरह भी रात को कुछ तिलमिलाते हैं

वो कैसे खोलें दरवाजे अगर चुपचाप हो दसतक
हवा की उँगलियाँ लेकर लुटेरे भी तो आते हैं

अभी हैं इस जगह ना जाने कल फिर किस जगह होंगे
कदम मेरे बिना मुझको लिए ही दौड़ जाते हैं

बसाया है मुझे आँखों में आँसू की तरह उसने
मुझे बस देखना वो कब मुझे मोती बनाते हैं