अब तो मैं तेरे सहारे भी संभल सकता नहीं
थक गया हूँ दौड़ कर अब और चल सकता नहीं
वो जो इतना चमकते हैं वो चुराते रौशनी
मैं अँधेरा हूँ किसी की हो नक़ल सकता नहीं
एक दिन छुआ छूयाई में उसे भी खो दिया
वो जो कहता था के सूरज आज ढल सकता नहीं
अजनबी बन के ही मिलना जब कभी मिलना उसे
भावनाओ का कभी फिर हो कतल सकता नहीं
उसने राहें छीन लीं हैं पर उसे मालुम नहीं
ख्वाब तो फिर ख्वाब हैं उनको निगल सकता नहीं
एक उलझन से निकलकर तुम सफल हो किस तरह
उलझनों का ताज सिर ऊपर पिघल सकता नहीं
Friday, July 17, 2009
Friday, July 10, 2009
दोस्तों से अब
दोस्तों से अब कोई भी मशवरा होता नहीं
इसलिए उनकी बगल में भी छुरा होता नहीं
पेड़ पत्त्ते बांसुरी है झरने का संगीत भी
यह इल्लाही गीत है जो बेसुरा होता नहीं
तुम किसी के इशक में मरते हुए जीओ अगर
पाओगे ऐसा मज़ा जो किरकरा होता नहीं
अपने अंदर जा रहा है हर कदम जो आदमी
वो तेरी दुनिया का पागल सिरफिरा होता नहीं
मेरे मन के इक मकां में जो किराएदार है
उसके जैसा आदमी सब में बुरा होता नहीं
इसलिए उनकी बगल में भी छुरा होता नहीं
पेड़ पत्त्ते बांसुरी है झरने का संगीत भी
यह इल्लाही गीत है जो बेसुरा होता नहीं
तुम किसी के इशक में मरते हुए जीओ अगर
पाओगे ऐसा मज़ा जो किरकरा होता नहीं
अपने अंदर जा रहा है हर कदम जो आदमी
वो तेरी दुनिया का पागल सिरफिरा होता नहीं
मेरे मन के इक मकां में जो किराएदार है
उसके जैसा आदमी सब में बुरा होता नहीं
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