कब कहाँ कैसे हुआ कुछ भी पता चलता नहीं
है अँधेरा हर तरफ़ दीया कोई जलता नहीं
आज तेरा वक़्त है तूँ जान ले इतना मगर
वक़्त का कब वक़्त आ जाए पता चलता नहीं
मैं बड़े से पेड़ के साये तले इक बीज हूँ
जो महज संभावना है पर कभी पलता नहीं
जिसको भी मिलता हूँ लगता है कहीं देखा हुआ
खाक किस किस भेस में मिलती पता चलता नहीं
उम्मर भर पीता रहा हूँ जल्द ही जल जाऊँगा
पर बड़ा कम्बखत दिल हूँ आग में जलता नहीं
मैं सुनूँ आवाज़ तेरी अपने ही अंदर कहीं
पर तूँ अंदर है कहाँ मेरे पता चलता नहीं
तुम जला दोगे मुझे पर शब्द मेरे ना जलें
मैं किताबे जिंदगी का हूँ सफा जलता नहीं
लोग मेरी दोस्ती पे कर रहें हैं फ़खर सा
सब को बस ये भरम है जसबीर तो छलता नहीं
Saturday, August 29, 2009
Saturday, August 22, 2009
कब कहाँ
कब कहाँ कैसे हुआ कुछ भी पता चलता नहीं
है अँधेरा हर तरफ़ दीया कहीं जलता नहीं
आज तेरा वक़्त है तुम जान लों इतना मगर
वक़्त का कब वक़्त आ जाए पता चलता नहीं
मै सुनूँ आवाज़ तेरी अपने ही अंदर कहीं
पर तूं अंदर है कहाँ मेरे पता चलता नहीं
जिसको भी मिलता हूँ लगता है कहीं देखा हुआ
खाक़ किस किस भेस में मिलती पता चलता नहीं
तुम जला दोगे मुझे पर शब्द मेरे ना जले
मैं किताबे -जिंदगी का हूँ सफा जलता नहीं
है अँधेरा हर तरफ़ दीया कहीं जलता नहीं
आज तेरा वक़्त है तुम जान लों इतना मगर
वक़्त का कब वक़्त आ जाए पता चलता नहीं
मै सुनूँ आवाज़ तेरी अपने ही अंदर कहीं
पर तूं अंदर है कहाँ मेरे पता चलता नहीं
जिसको भी मिलता हूँ लगता है कहीं देखा हुआ
खाक़ किस किस भेस में मिलती पता चलता नहीं
तुम जला दोगे मुझे पर शब्द मेरे ना जले
मैं किताबे -जिंदगी का हूँ सफा जलता नहीं
Saturday, August 15, 2009
अब तेरा नाम
तूँ ही बाहर है तूँ ही अन्दर है
अब तेरा नाम ही लबो पर है
डूब जाऊँगा मैं कहीं उसमें
तेरी आंखों में जो समुन्दर है
सब से करते रहे मुहब्बत सी
बस यह इल्ज़ाम ही मेरे सर है
दिल में अब और कुश नही अब तो
एक लूटा हुआ सा मन्दिर है
ज़िन्दगी क्या सलूक करती है
सब का अपना यहाँ मुक़दर है
आज जसबीर आयेगा लगता
रोज़ ही सोचता मेरा घर है
अब तेरा नाम ही लबो पर है
डूब जाऊँगा मैं कहीं उसमें
तेरी आंखों में जो समुन्दर है
सब से करते रहे मुहब्बत सी
बस यह इल्ज़ाम ही मेरे सर है
दिल में अब और कुश नही अब तो
एक लूटा हुआ सा मन्दिर है
ज़िन्दगी क्या सलूक करती है
सब का अपना यहाँ मुक़दर है
आज जसबीर आयेगा लगता
रोज़ ही सोचता मेरा घर है
Friday, August 7, 2009
आज कल
जो तेरे आस पास रहता है
ज़िन्दगी भर उदास रहता है
उनसे जब चाँद बातें करता है
हाथ अपने गिलास रहता है
दोस्तों दुश्मनों को परखा है
फिर भी इक नाम खास रहता है
एक लम्हा हूँ अब मुझे जी लो
आखरी ही तो सांस रहता है
घर के अंदर तो सब लगे ठहरा
घर के बाहर का घास रहता है
यूँ तो जसबीर जल गया सारा
बस ज़रा दिल के पास रहता है
ज़िन्दगी भर उदास रहता है
उनसे जब चाँद बातें करता है
हाथ अपने गिलास रहता है
दोस्तों दुश्मनों को परखा है
फिर भी इक नाम खास रहता है
एक लम्हा हूँ अब मुझे जी लो
आखरी ही तो सांस रहता है
घर के अंदर तो सब लगे ठहरा
घर के बाहर का घास रहता है
यूँ तो जसबीर जल गया सारा
बस ज़रा दिल के पास रहता है
Saturday, August 1, 2009
दर्द जब से
दर्द जब से हुआ है अम्बर सा
दिल हमारा हुआ समुन्दर सा
मेरे माथे पे जल रहा दीया
जैसे हो मयकदे में मन्दिर सा
तीर आँखों पे सब के लगते हैं
कौन जीता है पर स्वयंवर सा
तूँ कहाँ ढूंढ़ने मुझे निकला
मैं नहीं हूँ किसी अडम्बर सा
कह रहा है मुझे वो आईने से
अब तूँ लगता नहीं सिकंदर सा
जिंदगी अब के साल यूं गुज़री
हादसों से भरा कैलेंडर सा
दिल हमारा हुआ समुन्दर सा
मेरे माथे पे जल रहा दीया
जैसे हो मयकदे में मन्दिर सा
तीर आँखों पे सब के लगते हैं
कौन जीता है पर स्वयंवर सा
तूँ कहाँ ढूंढ़ने मुझे निकला
मैं नहीं हूँ किसी अडम्बर सा
कह रहा है मुझे वो आईने से
अब तूँ लगता नहीं सिकंदर सा
जिंदगी अब के साल यूं गुज़री
हादसों से भरा कैलेंडर सा
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