Saturday, August 29, 2009

है अँधेरा हर तरफ़

कब कहाँ कैसे हुआ कुछ भी पता चलता नहीं
है अँधेरा हर तरफ़ दीया कोई जलता नहीं

आज तेरा वक़्त है तूँ जान ले इतना मगर
वक़्त का कब वक़्त आ जाए पता चलता नहीं

मैं बड़े से पेड़ के साये तले इक बीज हूँ
जो महज संभावना है पर कभी पलता नहीं

जिसको भी मिलता हूँ लगता है कहीं देखा हुआ
खाक किस किस भेस में मिलती पता चलता नहीं

उम्मर भर पीता रहा हूँ जल्द ही जल जाऊँगा
पर बड़ा कम्बखत दिल हूँ आग में जलता नहीं

मैं सुनूँ आवाज़ तेरी अपने ही अंदर कहीं
पर तूँ अंदर है कहाँ मेरे पता चलता नहीं

तुम जला दोगे मुझे पर शब्द मेरे ना जलें
मैं किताबे जिंदगी का हूँ सफा जलता नहीं

लोग मेरी दोस्ती पे कर रहें हैं फ़खर सा
सब को बस ये भरम है जसबीर तो छलता नहीं

Saturday, August 22, 2009

कब कहाँ

कब कहाँ कैसे हुआ कुछ भी पता चलता नहीं
है अँधेरा हर तरफ़ दीया कहीं जलता नहीं

आज तेरा वक़्त है तुम जान लों इतना मगर
वक़्त का कब वक़्त आ जाए पता चलता नहीं

मै सुनूँ आवाज़ तेरी अपने ही अंदर कहीं
पर तूं अंदर है कहाँ मेरे पता चलता नहीं

जिसको भी मिलता हूँ लगता है कहीं देखा हुआ
खाक़ किस किस भेस में मिलती पता चलता नहीं

तुम जला दोगे मुझे पर शब्द मेरे ना जले
मैं किताबे -जिंदगी का हूँ सफा जलता नहीं

Saturday, August 15, 2009

अब तेरा नाम

तूँ ही बाहर है तूँ ही अन्दर है
अब तेरा नाम ही लबो पर है

डूब जाऊँगा मैं कहीं उसमें
तेरी आंखों में जो समुन्दर है

सब से करते रहे मुहब्बत सी
बस यह इल्ज़ाम ही मेरे सर है

दिल में अब और कुश नही अब तो
एक लूटा हुआ सा मन्दिर है

ज़िन्दगी क्या सलूक करती है
सब का अपना यहाँ मुक़दर है

आज जसबीर आयेगा लगता
रोज़ ही सोचता मेरा घर है

Friday, August 7, 2009

आज कल

जो तेरे आस पास रहता है
ज़िन्दगी भर उदास रहता है

उनसे जब चाँद बातें करता है
हाथ अपने गिलास रहता है

दोस्तों दुश्मनों को परखा है
फिर भी इक नाम खास रहता है

एक लम्हा हूँ अब मुझे जी लो
आखरी ही तो सांस रहता है

घर के अंदर तो सब लगे ठहरा
घर के बाहर का घास रहता है

यूँ तो जसबीर जल गया सारा
बस ज़रा दिल के पास रहता है

Saturday, August 1, 2009

दर्द जब से

दर्द जब से हुआ है अम्बर सा
दिल हमारा हुआ समुन्दर सा

मेरे माथे पे जल रहा दीया
जैसे हो मयकदे में मन्दिर सा

तीर आँखों पे सब के लगते हैं
कौन जीता है पर स्वयंवर सा

तूँ कहाँ ढूंढ़ने मुझे निकला
मैं नहीं हूँ किसी अडम्बर सा

कह रहा है मुझे वो आईने से
अब तूँ लगता नहीं सिकंदर सा

जिंदगी अब के साल यूं गुज़री
हादसों से भरा कैलेंडर सा